सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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हाइकू____|||

जीवन पथ

उचित अनुचित

मैं हूँ विक्षिप्त


रुग्ण हृदय

शोकाकुल है देह

स्मरण तुम


घना कोहरा

धुंधली सी ये आँखें

फ़ैली हैं यादें


उदास क्षण

मेरी ये तन्हाइयां

यादें जुगनू


प्यार है तेरा

मचलती लहरें

मैं हूँ मछली

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14 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

अच्छा प्रयास किया है आपने।

निभा said...

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय शास्त्री जी___आपकी प्रतिक्रिया ही मुझे हौसला देती है :)

निभा said...

पहली बार में ही मेरे लिखे हाइकू को चर्चा मंच में शामिल करने हेतु हृदय से आभार आपका :)

जमशेद आज़मी said...

सुंदर हाइकू। पढ़कर अच्‍छा लगा।

निभा said...

आभार आज़मी जी

Onkar said...

सुन्दर हाइकु

निभा said...

शुक्रिया ओंकार जी

Himkar Shyam said...

सुंदर हाइकु

Himkar Shyam said...

सुंदर हाइकु

Unknown said...

अच्छा प्रयास

निभा said...

शुक्रिया :)

निभा said...

आभार आपका :)

सुनीता अग्रवाल "नेह" said...

Badhiya prayas
उदास क्षण और प्यार है तेरा विशेष रूप से अच्छे लगे शुभकामनाये 😊👍

सुनीता अग्रवाल "नेह" said...

Badhiya prayas
उदास क्षण और प्यार है तेरा विशेष रूप से अच्छे लगे शुभकामनाये 😊👍

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