सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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खो गयी हँसी

वो ढूंड रही है हँसने का  बहाना 
जाने कहाँ खो गया  वो ज़माना 
हंसती थी बिन बात बे ठिकाना 

नहीं मिलता उसे अब हँसने का 
एक भी बहाना .......
घुट सी रही है वो 
आँखों में उसके हर घड़ी
 झिलमिलाते रहते अश्क
हंसी से जिसकी करते थे कभी 
सब बे वजह रस्क 
खो चुकी वो वो अपनी हँसी
जी रही है सांसो के साथ 
जाने कैसी जिंदगी 
अपने ही कंधो पे ढो रही वो अपनी लाश 
कोई स्वप्न नहीं कोई चाह नही 
बोझ सी जिंदगी ना कोई उल्लास 
यादों की गठरी में हँसी भी 
हो गयी उसकी कैद 
आती है याद बेहद कभी कभी 
रोती है वो तड़पती है वो 
किसी अँधेरे  कोने में 
चुपचाप बैठ 

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