सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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स्नेह लिखो दुलार लिखो

तुम थे तुम हो तुम ही रहोगे
नफरत लिखो या प्यार लिखो
कहता है हमदम ये साल नया
तुम स्नेह लिखो दुलार लिखो
करते हो तुम सवाल बहुत
कभी तो अपना हाल लिखो
आती हूँ मैं याद तुम्हें भी
कुछ ऐसा इस साल लिखो
छोड़ो अब ये व्यथापुराण
आंसुओं का विवरण रहने दो
विपुलहर्ष ले नववर्ष आया
तुम हर धड़कन को प्रेम लिखो__|||💞

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2 comments:

RAKESH KUMAR SRIVASTAVA 'RAHI' said...

सुंदर भाव-अभिव्यक्ति।

निभा said...

शुक्रिया 😊

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