सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
RSS

#बसयूँही

भ्रम में भ्रमित
भ्रमण करता रहा
यह दिल बसयूँही
भटकता रहा__


फिर वही खेल फिर वही तमाशा
बेइंतहां मुहब्बत और दर्द बेतहाशा__


निशा रात्रि के माथे पर

आँखे हैं दो धँसी हुई

अश्क़ों की लकीरें बनती है


दिल भारी भारी लगता है__


दर्द है मेरे सीने में आँखों में आसूँ है कहाँ छुपाऊँ ख़ुदको मैं के हर तरफ़ तू ही तू है__

आशंकाओं के साये में दिल कर रहा विलाप है अश्रुओं की धार बह चली व्याकुल ये मन संसार है__

  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • RSS

0 comments:

Post a Comment