सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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आत्मा

बुद्ध तुम्हारे हाथों का
झुनझुना नही ,
जिसे तुम जब चाहो
जैसा चाहो बजाकर
नृत्य करने लगोगे, और
नाही ईश्वर तुम्हारा
खरीदा हुआ दास
जिससे तुम अपने मन
मुताबिक ब्रह्मांड का
निर्माण कराओ.

सुनो 
तुम्हारी देह कोई
आकर्षण का केंद नही
जिसे तुम 
सुनहरी कालीनपर बिछा
मात्र चुम्बनों से 
अपने जीवन का
नव निर्माण कर लोगे,
वो जीवन जो किसी
बीहड़ से कम नही,
इससे बेहतर है तुम 
पाषाण बन जाओ  पाषाण 
ताकि
तुम्हारी आत्मा तुम्हें
धिक्कार न सके____

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2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर।
पर्यावरण दिवस की बधाई हो।

निभा said...

धन्यवाद शास्त्री जी आपको भी खूब बधाई ��

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