सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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क्यूँ नही.......!!!!!

आँखों का समंदर ये सुखता क्यूँ नही.............तेरे बगैर ये ज़िंदगी कटती क्यों नही...................भूल जाना चाहती हूँ तुम्हें तो फिर भूलती क्यूँ नही...............नाम तेरा मेरे दिल से मिटता क्यों नही.....................तेरी आँखों में जो देखना चाहूँ खुदको..............तेरे लबों पे भी कभी मेरा नाम आता नही..............मुझे सामने देख तेरी तकलीफ़ को समझती हूँ ..................फिर तुमसे दूर मैं जाती क्यूँ नही..................रेशा रेशा सा दिल मेरा उघर गया..........................एक झोंका हवा का फिर इसे उड़ाता क्यूँ नही........................तुझे देख जो मिलता है मेरे रूह को सुकूं...................................ये आदत अब जाती क्यूँ नही............जो चाहूँ अपने दिल में मोहब्बत को दफ़न करना...................एक कब्र मेरे दिल में खुदता क्यूँ नही.............मिट जाते हैं सारे ग़म तेरी इक मुस्कान पे.................नज़रों को मेरी फिर वो दिखता क्यूँ नही...................कोई चाह नही सिवाय तेरी ख़ुशियों के.........................................फिर वो ख़ुदा मेरी मन्नत पूरी करता क्यूँ नही...!!!

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5 comments:

vj said...

बेहद खूबसुरत..कुछ तमन्ना अधूरी रह जाती हैं...और मन है के हकीक़त से वाकिफ़ होते हुए भी उम्मीद नहीं छोड़ता...चाहे उम्मीद झूठी ही क्यों न हो...

निभा said...

जी बिलकुल सही...... पसंद करने के लिए शुक्रिया....

vj said...

:)आप युहीं लिखते रहें। अगली बार कुछ प्रस्तुत करें तो सूचित कीजियेगा ट्विटर पर ।अपना ख्याल रखें। vijaya

निभा said...

मेरी लेखनी में रूचि दिखाने के लिए एक बार फिरसे आभार आपका परंतु इक सवाल है मन में आप यहाँ तक पहुँची कैसे??हो सके तो बताने का कष्ट करें :)

vj said...
This comment has been removed by the author.

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