सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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प्रेमिका हूँ मैं____|||

कल्पना के जादुई फ़रेबों में
सम्मोहन के स्वप्नलोक की
मल्लिका हूँ मैं____
एक प्रेमिका हूँ मैं_______

नदी सुनहरी कल कल बहती
ख़ुश्बू में लिपटी हवा है चलती
जहाँ परिंदे नित् करते गान
प्रेम है उस देश की शान__
सुगंधित जहाँ फ़ूल है खिलते
रंग बिरंगी तितलियाँ  उड़ती
इंद्रधनुष की  छटा बिखरती
उस देश की  मल्लिका  हूँ मैं
हाँ_इक प्रेमिका हूँ मैं______

सितारों के दीप हैं जलते
नृत्य करतीं तितलियाँ,
जहाँ हैं जुगनू चमकते
उस हसीं दुनियां की
कुँजी हूँ मैं____
प्रेम की रंगीं चुनरी में लिपटी
एक प्रेमी की प्रेमिका हूँ मैं_____|||

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12 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-01-2016) को "सुब्हान तेरी कुदरत" (चर्चा अंक-2224) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

निभा said...

बहुत आभार आपका आदरणीय शास्त्री जी_!!!

Onkar said...

बढ़िया रचना

निभा said...

शुक्रिया ओंकार जी____|||

udaya veer singh said...

सुंदर रचना के लिए बधाई

Nitish Tiwary said...

Sundar prastutui .
your most welcome to my blog.
http://iwillrocknow.blogspot.in/

निभा said...

आभार सर___

निभा said...

शुक्रिया आपका___

Unknown said...

बढ़िया रचना
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निभा said...

शुक्रिया :)

सुनीता अग्रवाल "नेह" said...

खूबसूरत जज्बात 😊

निभा said...

शुक्रिया 😊 💐

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