सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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मेरी आँखों में~!!!

ख़ामोश रातों में कभी
देखना मेरी आँखों में
झांककर,
मैं नही चाहती तुम्हें
ख़्वाब दिखाना
मैं नही कहूँगी तुम बनाओ
चाँद पे आशियानाँ,
नही दिखेंगे तुम्हें
इन आँखों में चंदा सितारे
न दिखाउंगी मैं तुम्हें
सब्ज़ बाग़ प्यारे,
मेरी आँखों के सम्मोहन में
उलझ मैं नही चाहती
तुम करो कोई झूठे वादे
जो न हो सके कभी मुक़म्मल,
जो झाँक सको झाँकना
इन आँखों में
रात के स्याह अंधेरों में
तुम्हें वहाँ नही मिलेगा
मदिरा का कोई प्याला
छलकता हुआ
पीकर जिस सुरा को
आँखों ही आँखों में तुम
होने लगो मदहोश
नही दिखाऊँगी मैं तुम्हें
दम तोड़ चुकी उन ख़्वाइसों की
लाशों की शक़्ल मेरी आँखों में
तुम झाँकना बेहिचक
इन आँखों में
जहाँ तुम्हें मिलेगा इक
नन्हा सा जुगनू
उम्मीद की हल्की सी रौशनी में
टिमटिमाता हुआ
स्नेह वात्सल्य से लेश
निःस्वार्थ प्रेम का पुष्प लिए
तुम्हारे इंतज़ार में
तुम्हारे श्री चरणों में अर्पण को
वरदान का न कोई आस लिए~!!!











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6 comments:

Onkar said...

बहुत सुन्दर

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (20-03-2016) को "लौट आओ नन्ही गौरेया" (चर्चा अंक - 2288) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

निभा said...

धन्यवाद :)

निभा said...

बहुत शुक्रिया शास्त्री जी चर्चामंच में शामिल करने हेतु आभार आपका :)

कविता रावत said...


प्यार में दिखावा टिकाऊ नहीं होता,... बहुत सुन्दर रचना

आपको जन्मदिन की बहुत- बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!

Unknown said...

Bhut bahdiya likha hai apne, kya aap apne is blog content ko book me convert krana chahnege, publish book Online Gatha

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