सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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कैसी ये प्रीत.......!!!!

चाहत है तेरी....मेरा फ़साना
जिंदगी में मेरी चाहे
अब ना हो तेरा आना
तेरे प्यार से मुझे
हर ग़म है सज़ाना
ना होगा इस दिल से कभी
तुझे भूल पाना
कैसी ये प्रीत जानम
कैसी लगी है
आँखों में आंसू बालम
लबों पर हँसी है
तुझे हँसाने को
दर्द छिपाने को
ये जिंदगी दे रही
इम्तेहां हर घड़ी है
किसी ने ना जाना
मेरी मन की व्यथा को
खो दिया है चैन मैंने
प्यार द घड़ी को
छुप छुप के रोऊँ मैं
दुनियाँ हंसाऊं मैं
लफ्ज़ों में ग़म को अपने
कुछ यूँ पिरोउं मैं
उमड़ पड़ता है प्यार मेरा
जो देखूँ तुझे सामने
गले लग जाने को
दिल कहता है मानने
दफ़न करके हर ख्वाइस
रहती हूँ मैं सामने
रूट ना जाये खुदसे
तूं इस बहाने

तुझसे ही मान मेरा
तूं ही अभिमान मेरा
कम ना होगा कभी
इस दिल से प्यार तेरा
****************#बस यूँही

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7 comments:

आशीष अवस्थी said...

वाह ! बहुत ही सुंदर रचना , धन्यवाद !
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~ I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ ~ ( ब्लॉग पोस्ट्स चर्चाकार )

निभा said...

शुक्रिया ......

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (30-08-2014) को "गणपति वन्दन" (चर्चा मंच 1721) पर भी होगी।
--
श्रीगणेश चतुर्थी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

निभा said...

शुक्रिया सर आपको भी बहोत सारी शुभ कामनाएँ....

Onkar said...

बढ़िया रचना

सु-मन (Suman Kapoor) said...

बहुत सुंदर

vj said...

बेहतरीन...

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