सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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इक ख़्वाब एक हक़ीकत......!!!

उड़ती थी वो आकाश में 
करती थी बादलों की सवारी 
चाँद तारों से करती बातें 
खिल उठती कमल पुष्प की भांति 
बारिश की बूंदों से खेलती 
हवाओं के संग झूमती गाती
प्रेम ही प्रेम हर जगह दिखता
जहाँ भी उसकी नज़र थी जाती 
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आंख खुली 
होश में वो जो आई 
रेगिस्तान में खुदको पाई
प्यास ने ऐसी आग लगाई
मीठा सा एक  झड़ना 
अंखियों में समाई 
लगी भागने लगी दौड़ने 
झड़ने के नज़दीक पहुँचने 
दूर दूर वो झड़ना होता जाये 
पास न उसके वो पहुँच पाए 
प्यास ने उसे यूँ भरमाया 
करी साज़िश भ्रांति फैलाया
रही तड़पती यूँही बिलखती 
बूंद बूंद को तरसती ....!!!#बसयूँही 





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1 comments:

Unknown said...

बहुत ही खूबसूरत ✌

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