सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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शब्द मेरे___|||

कुछ शब्द मेरे
भटकते रह गये,
अनंत आसमां में
तैरते रह गये,
वे शब्द न बन सके
ज़रूरत किसी की,
चाहत किसी की,
न आदत किसी की,
वे शब्द मेरे
दुत्कारे गये
किसी गरीब फटेहाल
मासूम बच्चे की तरह
डबडबाई आँखों से
दिशाहीन राहों पे
कहीं चले गयें
बसयूँही चले गये~!!!‪#‎बसयूँही‬

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4 comments:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27-11-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2172 में दिया जाएगा
धन्यवाद

निभा said...

आभार आपका चर्चा मंच में स्थान देने के लिए~!!!

Rishabh Shukla said...

​​​​​​​​​सुन्दर रचना ..........बधाई |
​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​आप सभी का स्वागत है मेरे इस #ब्लॉग #हिन्दी #कविता #मंच के नये #पोस्ट #असहिष्णुता पर​ ​| ब्लॉग पर आये और अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें |

​http://hindikavita​​manch.bl​​ogspot.in/2015/11/intolerance-vs-tolerance.html​​
http://kahaniyadilse.blogspot.in/2015/11/blog-post_24.html

निभा said...

धन्यवाद आपका~!!!

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