इस जहां के उस द्वार के पार
मैं करुँगी तुम्हारा इंतज़ार
तुम आओ तो संग अपने
मेरी मुस्कुराहट लेते आना
स्नेह भरे हाथों से अपने
मेरी लबों पर सज़ा देना
के मुस्कुराकर कर सकूँ मैं
तुम्हारा अभिवादन
के हँस सकूँ मैं
तुम्हें ख़ुश करने को
प्रतिपल हर क्षण
मैं मिलूंगी तुम्हें
इस जहां के उस द्वार के पार
तुम आना निश्चिंत मन से
अपने इस जन्म की सम्पूर्ण
ज़िमेदारियों को पूर्ण कर
अपनों को संतुष्ट कर
हृदय को अपने
हर उलझनों से मुक्त कर
के न लेना पड़े
फिर कभी तुम्हें
किसी झूठ का सहारा
छोड़ जाने को मुझे,
अबकी आना
कभी वापस न जाने के लिए
जन्मों जन्मांतर तक मुझे
अपने हृदय में स्थान देने के लिए,
सुनो___
तुम आना पास मेरे
अपनी प्यारी सी
मुस्कुराहट बिखेरे
मुझे सीने से लगा
आँखों में बसा
अपनी पलकों को मूंद लेना
के रह सकूँ सुरक्षित
युगों युगों तक
तुम में समाये
भय बिछड़ने का तुमसे
इक पल को भी निकट
मेरे न आये और मैं
निर्भय हो तुम्हारे
मन उपवन में
भ्रमण कर सकूँ
सुकूँ से जी सकूँ~!!!#बसयूँही
मैं करुँगी इंतज़ार~!!!
22:27 |
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4 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (06-12-2015) को "रही अधूरी कविता मेरी" (चर्चा अंक-2182) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर प्रस्तुति
चर्चा मंच में शामिल करने हेतु आपका आभार आदरणीय शास्त्री जी~!!!
बहुत बहुत धन्यवाद ओंकार जी~!!!
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