सुबह सवेरे
नर्म हरी दूब पे
चमकता,आकर्षण
में बाँधता,
ओस की बूँदे
बहलाता मन प्राण,
इक ओर चमकता
प्रकाश फैलाता
उगता सूरज,
करता समस्त सृष्टि
का कल्याण,
द्वन्द छिड़ा है मन में
दिल को क्या समझाएं,
सूरज की किरणों से
भाप बन अदृश्य होते
बूँदों के प्रति शोकाकुल हो,
या सूर्य को नमन् कर आएं~!!!
सूर्य या बूँदे ओस की~!!!
19:48 |
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4 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (09-01-2016) को "जब तलक है दम, कलम चलती रहेगी" (चर्चा अंक-2216) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चर्चा मंच में शामिल करने हेतु आपका हार्दिक आभार आदरणीय शास्त्री जी ~!!!
सुन्दर चित्रण ।
सुन्दर चित्रण ।
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