भ्रम में भ्रमित
भ्रमण करता रहा
यह दिल बसयूँही
भटकता रहा__
भ्रमण करता रहा
यह दिल बसयूँही
भटकता रहा__
फिर वही खेल फिर वही तमाशा
बेइंतहां मुहब्बत और दर्द बेतहाशा__
बेइंतहां मुहब्बत और दर्द बेतहाशा__
निशा रात्रि के माथे पर
आँखे हैं दो धँसी हुई
अश्क़ों की लकीरें बनती है
दिल भारी भारी लगता है__
दर्द है मेरे सीने में आँखों में आसूँ है कहाँ छुपाऊँ ख़ुदको मैं के हर तरफ़ तू ही तू है__
आशंकाओं के साये में दिल कर रहा विलाप है अश्रुओं की धार बह चली व्याकुल ये मन संसार है__
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