प्रेम तुम्हारे लिए..
ठंडी हवाओं के संग
नर्म मुलायम खुशबूदार
गुलाब की खुबसूरत
पंखुड़ियों पर चलते रहना
रौंदे जाने पर
जिनकी खूशबू
और तीव्र हो
तुम्हारे दिल ओ दिमाग को
तरोताज़ा कर देती हैं__
प्रेम मेरे लिए...
मरुस्थल की
तपती रेत में
नंगे पांव
गिरते पड़ते
चलते रहना
जहाँ कोई
मरीचिका भी नही
जो दे सके
मेरी आँखों को
भर्म, और मैं
कर सकूँ अपने
दिमाग को भ्रमित
ताकि मिल सके
मेरे दिल को
उम्मीद की
एक नई किरण__|||#बसयूँही
12 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (14-09-2018) को "हिन्दी दिवस पर हिन्दी करे पुकार" (चर्चा अंक-3094) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हिन्दी दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय शास्त्री जी💐
सुन्दर
धन्यवाद 🙏
बेहतरीन रचना
बहुत बढ़िया
आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/09/87.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
बेहतरीन रचना
आभार
सादर
बहुत सुन्दर....
वाह!!!
एक सुकून की लहर दे गई आपकी यह रचना। उम्मीद की इक नई किरण। बेहतरीन भाव। शुभकामनाएं आदरणीय निभा जी।
आवश्यक सूचना :
सभी गणमान्य पाठकों एवं रचनाकारों को सूचित करते हुए हमें अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है कि अक्षय गौरव ई -पत्रिका जनवरी -मार्च अंक का प्रकाशन हो चुका है। कृपया पत्रिका को डाउनलोड करने हेतु नीचे दिए गए लिंक पर जायें और अधिक से अधिक पाठकों तक पहुँचाने हेतु लिंक शेयर करें ! सादर https://www.akshayagaurav.in/2019/05/january-march-2019.html
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