सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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देव पुरुष___

चुपके से एक रोज़
रात अफ़साना सुना गया
ख़ामोशी में लिपटा 
इक राज़ अनोखा
मेरे दामन से बाँध गया
रौशन थे चाँद सितारे
पुरवाइयों की अठखेली
स्वर्णआभा से दमक रहा था
मुख मंडल उस देव तुल्य की
भाव विभोर थी प्रकृति सारी
झूम रहा था क़ायनात
चरण कमल प्रिय के देख़
मन गा उठा मधुर प्रेम राग़
हौले हौले ज्यूँ क़रीब आएं
आत्मा में समाते गएँ
वे दिव्य लोक के

देव पुरुष
धीमे धीमे मंद मंद मुस्काएं
वह चंद्रबदन तेज़ सूर्य का
कृपा सरस्वती जहाँ बिराज़े
वह चंचल मन शितल जन
हर मन को सदैव सुहाएँ
वो रात अनोखी
अहसास अनोखा
इक रंग नया
ज़ीवन को मेरे
लगा गया
चाँद उतरा जो

 ज़मी पे
रूह में मेरे समा गया........



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8 comments:

दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15.12.16 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2557 में दिया जाएगा
धन्यवाद

RAKESH KUMAR SRIVASTAVA 'RAHI' said...

सुंदर भाव-अभिव्यक्ति।

निभा said...

शुक्रिया आभार आपका दिलबाग जी...

निभा said...

बहुत बहुत धन्यवाद आपका राकेश जी....

कविता रावत said...

सुंदर अभिव्यक्ति..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (16-12-2016) को "रहने दो मन को फूल सा... " (चर्चा अंक-2558) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

निभा said...

धन्यवाद् कविता जी..

निभा said...

बहुत बहुत शुक्रिया सादर आभार आदरणीय शास्त्री जी

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