मैं छोड़ चली हूँ अब तुम्हें
हृदय में तुम्हारी याद लिए
अनुराग के मधुर क्षणों संग
वियोग की पीड़ा अथाह लिए
कप्पन लिए पैरों में अपने
अवशेष प्रेम का कांधे लिए
जा रही हूँ बहुत दूर तुमसे
बोझ कलंक का माथे लिए
व्यथित मन की घुटती साँसे
आंसुओं से भींगे अधर लिए
मैं छोड़ चली हूँ अब तुम्हें
ह्रदय में तुम्हारी याद लिए__|||
हृदय में तुम्हारी याद लिए
अनुराग के मधुर क्षणों संग
वियोग की पीड़ा अथाह लिए
कप्पन लिए पैरों में अपने
अवशेष प्रेम का कांधे लिए
जा रही हूँ बहुत दूर तुमसे
बोझ कलंक का माथे लिए
व्यथित मन की घुटती साँसे
आंसुओं से भींगे अधर लिए
मैं छोड़ चली हूँ अब तुम्हें
ह्रदय में तुम्हारी याद लिए__|||
9 comments:
सुन्दर रचना
शुक्रिया आपका 💐
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (30-05-2017) को
"मानहानि कि अपमान में इजाफा" (चर्चा अंक-2636)
पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय शास्त्री जी मेरी रचना को चर्चामंच में शामिल करने के लिए 😊
बहुत सुन्दर रचना
आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं
विरह के रंग और प्रेम की आभा लिए सुंदर रचना ...
जनम दिन की हार्दिक बधाई ...
बहुत बहुत धन्यवाद आप सभी का स्नेह बनाये रखें
Ration Card
आपने बहुत अच्छा लेखा लिखा है, जिसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
Post a Comment