सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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मेरा डर

जब भी मै अपनी तलास में निकलती हु 
एक आंधी न जाने कहा से आती है 
मुझे बिखेर कर चली जाती है 
हर बार हर आंधी से निकल आई मै 
खुद से खुद को लेकर 
न जाने क्यों अबकी डर बहोत है मन में कही 
कही में मुझको खो न दू 

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