एक रोशनी भटकती सी आ गई अँधेरे के करीब एक रोज मालुम था अँधेरे को रोशनी नहीं हो सकती उसकी दोस्त दिलाया रोशनी ने यक़ीन बहुत खुब, अँधेरे को भाने लगी रोशनी की धूप, डरते डरते अँधेरे ने बढ़ाया जो कदम, गायब हो गई रोशनी थर थर काप उठा मन, सज़ा मिली लगाने की रोशनी से दिल की लगन, घुट घुट के रोती रही, तड़पती रही बिल्खती रही, देती रही सदा, एक ना सूनी रोशनी ने, जैसे अँधेरे की ही हो सारी खता, सब कुछ एक ख्वाब की तरह गया बीत अँधेरे को मिल गई जिंदगी भर की सीख ♥
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