सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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बस यूंही

बहुत परेशान हो लिए, बहुत झेल लिए मुझे
जाओ के अब खुशियाँ मनाओ, मैने खुद से आज़ाद किया तुझे
सच कहुं तो थक गई हूँ तुम्हारे पीछे भागते भागते
आज भी जब वो बातें तुम्हारी याद आती है, खुद पे ही हंसी आती है,
उन दिनों यूँ लगता था तुम्हें मेरी जरूरत है, मुझ से तुम्हें मोहब्बत है, मेरी बातें मेरी फिक्र मुझे भी ना जाने कब ले गई तेरे करीब, मेरी  आदतों मे इस कदर शामिल हो गये तुम, तुझे ना देखूं एक पल तो सासें हो जाती है गुम, वक्त ने बहुत जल्द करवटें बदली, उन्हें बदलते देखती रही मै पगली, कुछ कहने का हक तो नही मुझे,
पर याद रखना मुझ जैसी चाहत कोई ना देगी तुझे, अब तुझ से प्यार की कभी ना मांगू भीख, तुझ से दिल लगाने की क्या  खुब मिली है सिख... ♥

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