सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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प्रेम ♥

कहते है प्रेम कब कैसे क्यूँ हो जाता है पता ही नहीं चलता, आज इन सवालों के द्वारा हद से ज्यादा परेशान किये जाने पर मै जवाब ढुंढ़ने एक विरान सुनसान जगह पर खुद से मिलने पहुँच गई, खुद से बातों का सिलसिला शुरू करते हुए मैने जाना किसी के प्रति अपने मन मे चाहत का जगना, जब आप किसी से अपनी मन की बातें कह नहीं पाते, आपको ये लगने लगे के कोई आपको समझने वाला नही, खुद को भीड़ मे भी तन्हा महसूस करना, ऐसे मे किसी का अचानक सामने आना, आपकी बातों को समझने का दावा करना, आपका ख्याल रखना, हर छोटी छोटी बातों पे विशेष ध्यान दिये जाना, आपको सबसे अलग सबसे अच्छा दिखाने की अथाह चेष्टा उनके द्वारा किये जाते रहना, फिर आपके मन मे इन बातों का हावी होते रहना ही आपको धीरे धीरे चाहत की ओर ढकेलती जाती है, आपको यूँ लगने लगता है के पूरे सन्सार मे एक मात्र वही है जो आपको समझता है, जिसे आपकी परवाह है, जब वो आपको अपनी खुशी की वजह बताया है, आपका मन मंदिर भी हज़ारों रंगो से खिल उठता है, और फिर आप उस मंदिर मे अपने प्रेम की स्थापना करते हो, प्रेम अगर सच्चा हो तो वो बस यूँ ही नहीं हो जाता,
आदतें बदल सकती है परंतु प्रेम कभी नही..... 

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