उस वक्त कुछ समझ नही आता जब किसी का व्यवहार आपके प्रति इतना बदल जाता है ,जैसे किसी छूत की बिमारी से ग्रस्त रोगी को कुछ लोग देखने से भी कतरा ते है..... रोगी जानता है के कोई उसके पास नहीं आना चाहता, उसे देखना तक पसन्द नहीं किया जाता, फिर भी वो चाहता है, उम्मीद लगाता है, कोई आये और स्नेह के दो बोल, बोल जाये,, इसि आस के साथ वो अपने दिन की शुरूआत करता है, और निराशा से भरी रात को ताकते रहता है....... शून्य.........
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