सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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मन

आज कुछ नया चल रहा है मन के भवंर मे, अकसर मन अपनी व्यथा ना कह पाने की परिस्थिति मे नेत्रों का सहारा ले कर खुद को शांत कर लेता था, लेकिन इस बार मन को तसल्ली नहीं हुई,
वो जा पहुंची दिमाग के पास....
दिमाग हमेशा से जानता है के मन गुनाहगार है, सच जानते हुए भी वो खुदको भ्रम जाल मे रखना पसन्द करता है, जितनी बार भी दिमाग ने कोशिश की सच दिखाने की, मन ने तेजी से आँखे बन्द कर ली, जैसे कोई मासुम बच्चा अन्धेरे से डर कर  अपनी आँखे बन्द कर लेता है, उसे क्या मालुम आँखें बन्द करने से अन्धेरे खत्म नहीं होते, थोड़ी देर के लिये डर खत्म हो जाता है,
दिमाग ने हमेशा कहा के जो बहुत अच्छे होते है वो कभी अपनी अच्छाई नही छोड़ते, अगर वो किसी को नापसन्द भी करने लगे तो साफ नहीं कहते, बस आपके आसपास ऐसी परिस्थिति ऐसा माहौल बनाने लगते है जिसमें आप उलझ कर खुद ही दम तोड़ दो,
कोई कितना भी व्यस्त हो किसी भी हाल मे हो, वो एक पल अपनो के लिये निकाल ही लेता है, लेकिन जिन्हें अपना समझा ही नहीं उनके लिये वो एक पल भी बरबाद क्यों किया जायें,  और वैसे भी किमती वक्त उनके लिये होते है जो काम आये, तो मन मेरे सच को स्वीकारना सीख, तू इस लायक नहीं...... तेरा समय समाप्त हुआ..... जा सो जा.....  

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