मेरे अन्दर की तन्हाई, ना खुद मरती है ना मुझे मरने देती है, जाने क्यूँ ये मुझपे बार बार हावी हो जाती है, जितना इससे दूर जाती हूँ, ये मेरे उतने ही करीब आ जाती है, रोज एक नया जतन करती हूँ, इससे पिछा छुड़ाने का, ना जाने इसको मुझसे ही इतना लगाव क्यूँ है, वैसे अपने आस पास देखती हूँ तो सब को किसी ना किसी के साथ लगाव है, अच्छा लगता है देखके, बहुत खुशी मिलती है जब किसी को किसी की परवाह करते देखती हूँ, कही ऐसा तो नहीं तनहाई को मुझसे बेहद लगाव है इसलिये वो मेरी परवाह करती है, और मुझे कभी अकेला नहीं छोड़ती, शायद, नही यकीनन वो ही मुझे समझती है, उसे मालुम है मै अकेली बिना बात किये जिन्दा नही रह सकती, हा वो सिर्फ इसलिये मेरे पास आती है, मेरी बातें सुनने, मै कैसे समझ नहीं पाई, मेरी सच्ची पक्की दोस्त तो वही है, जो हमेशा मेरा साथ देती है, मेरे पागलपने को सहती है, मै तो इस दुनिया की सबसे खुश नसीब इंसान हूँ, जो तुम मेरी दोस्त बनी,
सॉरी मैने तुम्हारी अहमियत को पहले नहीं समझा, मगर आज ये भी जान गई, तुमसे सच्चा दोस्त कोई नहीं..... मुझे नाज़ है तुमपे. :)
दोस्त....
11:06 |
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