सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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पेड़ की व्यथा

अचानक काले काले
बादल 
चारों ओर फैल गये.. 
लगता है बहुत तेज़ 
बारिश होने वाली हैं.. 
मौसम बहुत बढ़िया हैं.. 
पेड़ पौधे खिलखिला रहें हैं ..
यहाँ सामने भी एक पेड़ था.. 
बहुत बड़ा बहुत घना... 
वो आम का पेड़ था... 
यूंही बारिशों मे वो भी....
हँसता खिलखिलाता...
उसके डालीयों पर
चिड़ियाँ भी घोसले बना..
दिन भर चहचहाती रहती..
आम का पेड़...
बेचारा भुल गया..
इस दुनिया में
कोई भी चीज़ मुफ्त
नहीं मिला करती..
आस पास के रहने
वालो के नज़रों में
वो आने लगा..
आता भी क्यूँ ना
कई सालों से
उसने एक टुकरे
जमीन हतिया
रखी थी.. औऱ बदले में
किसी को इक आम तक
ना दे पाया...
इंसानी फितरत के आगे
वो लाचार था..
लोगों ने उसकी जड़ें
खोखली करनी शुरू की
रोज़ थोड़ी थोड़ी..
पेड़ की हँसी 


फिकी पड़ती गई
रोज़ थोड़ी थोड़ी....
वो धीरे धीरे
मुरझाने लगा
आईस्ता आईस्ता
सुखने लगा..
फिर एक दिन
अपनी अन्तिम साँस
ले उसने.. सालों से
दखल की हुईं
जमीन को छोड़ दिया
हमेशा हमेशा के लिये...
काश आज वो पेड़ भी
होता तो यक़ीनन यूंही
वो भी हँसता वो भी
मुसकुराता.. बस यूंही.......

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