देखों वो बग़ीचा कितना खूबसूरत है ना... रंग बिरंगे फूल खिले हैं..
पंछियाँ चहचहा रहीं हैं खुशियों के गीत गा रहीं हो जैसे..
कितना मोहक हैै ये वातावरण हर तरफ जिंदगी उल्लास मना रहीं हो जैसे... सूनो जरा ध्यान से सूनो वो खिलखिलाने की आवाज़ें कहीं पास से आती प्रतीत होतीं हैं.. वो प्यार से भरपूर मिठी मिठी मिठास लिये जाने कौन इस मधुरता भरी बाग में अपनी मिठास घोल रहें हैं.. चलो चल के देखते हैं अपने नैनो को उस हंसी के चेहरों के दर्शन का अहोभाग्य प्रदान करते हैं..
वो देखो वे सब कैसे खिलखिला रहें हैं मुसकुरा रहें हैं.. ये सब तो प्यार हैं.. जिंदगी के हर रिश्ते का प्यार हैं ये.. उन्हें देखों वो जो सामने नज़र आ रहें हैं वे माता पिता का प्यार है आशीर्वाद से भरपूर कितना सकूं है उस प्यार के चेहरे पर ...मंद मंद उनकी खिलखिलाहट हवाओं में अपना स्थान बना चूँकि हैं.. जरा देखो उस नोकझोकं करतीं हँसती पती पत्नी के प्यार को.. कभी रूठना कभी मनाना प्यार में हँसना प्यार में खिलखिलाना... देखो कितनी रोचक है उसकी हँसी... ये देखो भाई बहन का प्यार नटखट लड़ते झगड़ते भी हँसता हुआ वो प्यार ..भरोसे से भरपूर उसकी हँसी जिंदगी को जिंदादिल बनाती पूरी रौऩक बिखेर रही है....... कितने सारे प्यार हैं आसपास.. हर तरफ प्यारी हंसी बिखरते हुए.. ये प्यार..
ओह ये क्या.....ये सिसकना किसका.. कौन सिसक सिसक के इस खुशनुमा जहाँ में अपने गमो की दुहाई दे रहा है. ...... सूनो वहाँ देखो वो सबसे दूर एकांत में कौन बैठा है.. जहाँ सारे प्यार हँस रहें हैं खिलखिला रहें वहाँ ये दूर सबसे अलग चुपचाप आखिर कौन क्यूँ बैठा है... चलो उसके पास चलते हैं उससे पूछते हैं क्यूँ तनहाई में वो तनहा है....
सूनो उसकी बातें वो कह रही है.... मैं भी प्यार हूँ... लेकिन वो जो सारे प्यार हँस रहें है मुसकुरा रहें हैं... उनसे जुदा हूँ मैं... गौड़ से देखो उन प्यार को सब के सब रिश्तों के प्यार हैं... जहाँ चाहे कुछ भी हो जायें.. आखिरकार हँसना ही उनकी नियति है...
और मैं ठहरी बिन रिश्तों की प्यार... हाँ मैं भी हँसती हूँ.. मैं भी खिलखिलाती हूँ... परंतु मेरी हँसी उन फूलों के समान है जो खिलती है.. महज़ बिखर जाने को... मुझे तनहाई में रहने की आदत नहीं जरूरत है.. क्योंकि मैं सिर्फ तनहा लोगों को पसन्द आती हूँ... जब तक वो तनहा होते हैं मुझे पसन्द करते हैं... पसन्द किये जाने पर मैं खुश होती हूँ.. हँसती हूँ... खिलखिलाहटें मेरे चेहरे की रौऩक बढ़ा देती हैं... मैं भूल जाती हूँ.. मैं बिन रिश्तों की प्यार हूँ.. जहाँ किसी की कोई जिम्मेदारी नहीं होती... दो तनहा दिलों के बीच मैं बड़े शान से मैं पनपती हूँ... जब एक की तनहाई दूर होती है तो दूसरे की आंखों से बहने लग जाती हूँ ...उसकी सिसकियों में मैं सिसकनें लगती हूँ... मेरी हँसी के पल मात्र कुछ पल ही होते हैं... क्या करू ..
बिन रिश्तों की प्यार जो हूँ... जाओ अब यहाँ से.. मुझे तनहा छोड़ दो.....
सूना ना तुमने... मैं तुमसे ही कह रही हूँ मन मेरे... चलो यहाँ से चलें.. ये प्यार तो बेवकूफ़ है.. ये रिश्तों वाली प्यार में.. बिना रिश्तों के प्यार बन हँसना चाहती है.. इसे नहीं मालुम ये दुनिया है यहाँ प्यार सिर्फ रिश्तों में जिन्दा रह सकना है ..हँस सकता है.. मुसकुरा सकता है.. खिलखिला सकता है... इस बेनाम रिश्तों के प्यार का यहाँ कोई नहीं.. कोई जगह नहीं.... चलो मन कहीं दूर चलें ♥
मन मेरे♥
06:46 |
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