सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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डर

ये रात अचानक इतना भयावना क्यों हो उठा...
क्यूँ एक अंजानी सी डर मुझे जकड़ी सी जा रही है..
ना जाने क्या होने वाला है कल...
मन में होने लगी बहुत हलचल...
मुझे खौफ़ नही कत्ल होने से..
बशर्ते मेरी एक भी साँस ना रहें...
मैं घुंटना  नही चाहती...
मैं तड़पना नही चाहती...
यूँ डर डर के जीना नही चाहती....
ग़र देना ही है सज़ा तो
सज़ा ए मौत दो....
मैं यूँ तिल तिल के मरना नही चाहती...
मुझे अब और ना डराओ...
मैं अब और सहन नही कर सकती..
मुझपे रहम करो... के मैं अब और
जीना नही चाहती.....

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