सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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थक गयी हूँ मैं

बहोत काम है मुझे
तुम जाओ किसी और के यादों में रहो
थक गयी हूँ मैं
तुम्हारी चंद यादों को
सदियों में ढोते ढोते
मेरी बेवकूफ़ियों पे हसने वाले
भूल गये क्या
मुझे ये खिताव
तुम्ही थे देने वाले
जाओ ....जाओ के कहीं और डेरा जमाओ
मुझे बहोत काम है
फुर्सत में याद करने वाले ....

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