सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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बस यूँही

तुम्हें मुझसे दूर रहना पसंद है 
मुझे तुम्हारी हर पसंद ..पसंद है 
हो चाहें वो कुछ भी 
कहीं ना कहीं तुम शामिल 
कर ही लेते हो मुझे भी ..
तुम्ही कहो
कैसे ना पसंद करूँ उनको 
जिनके रचेता हो सिर्फ तुम ही 
माना तुममे झोल बहोत है 
पर क्या करें 
मीठी तेरी बोल बहोत है 
तेरी हरकत आत्मा में 
देता सकून घोल बहोत है 

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