सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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ये किताब

कुछ शब्दों से ही शुरू हुआ था वो प्रेम एक किताब के किसी कोने में 
जब कभी किताब के पन्ने पलटोगे ..वो प्रेम अनायास ही तुम्हें दिख जायगा 
तुम चाहों या ना चाहों ..मेरा प्रेम तुम्हें कही ना कही दिख जाएगा ...
कुछ पल के लिए ही सही..तुम्हारे दिमाग में होगा मेरा हाँ सिर्फ मेरा राज़ ..
तुम करोगे मुझे याद .. देखना एक दिन ज़रूर तुम्हें मैं याद आउंगी ... 
तुम भले ही मुझसे प्यार ना करो ..लेकिन वो पल तुम्हें याद आयेंगे ..जब तुम्हारी एक पुकार 
में मैं सब कुछ भूल कर तुम्हारे पास आ जाती थी .. तुम्हारी वो जिद .. जो शायद अब तुम भूल चुके हो ..
तुम तो मुझे देखने के बाद सब कुछ भूल गये ... लेकिन मेरे बाद ये किताब तुम्हें मेरी याद दिलाएगी ...

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