सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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ना जाने क्यूँ .........

क्यूँ मैं तुम्हें बेपनाह चाहने लगी
तुम में ही खोने लगी
सपने सजाने लगी
हर घड़ी सोचने लगी
किसी दिन आओगे पास मेरे
लेट जाओगे चुपचाप तुम
गोदी में सर रख मेरे
धीरे धीरे सहलाउंगी

मैं बालों को तुम्हारे
देखती रहूँगी घण्टों मैं  तुम्हें
तुम टोकोगे तो हाथ रख दूंगी लवों पर तुम्हारे
तुम्हारे हाथ जब मेरे हाथों को हटाने के लिए बढ़ेंगे
तुम्हारे छुअन के  मीठे अहसास
मेरे रगों में दोरेंगे
लिपट जाऊँगी में तुमसे
तुम्हारी सांसे मेरे अंदर महकेंगे...

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