सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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इश्क समंदर

इश्क मोहब्बत प्रेम प्यार कहने सुनने में जितना आसान उतना ही मुश्किल है इसके गहराई में जाना...ये समंदर है इश्क का जिसमे होता है डूबना...बस डूबते जाना...ना कोई तल ना कोई ठिकाना
किनारों में इसके होती है अकुलाहट दिल में दर्द.. ह्रदय में आहत..
ज्यों होले होले समंदर में पड़ते कदम दूर होते जातें हैं मोहब्बत के गम..इन गहराईयों में अक्स दिखते हैं सनम के..उनकी मुस्कुराहट में भूलते जातें हैं सारे सितम अपने प्रीतम के....देख चेहरा गहराइयों में समंदर में करतें हैं प्रवेश..जहाँ होता है रंजों ओ गम का आना निषेध..
ज्यों ज्यों गहराइयाँ गहरी होती जाती है....बस प्रेम प्रेम प्रेम दिखाई देती है....ना किसी के साथ की ना किसी के पास की ये सफ़र तो है बस यादों का उस इश्क की उस चाह की...हो जाता है जब जलमग्न ये रूह...नही रखता मायने कोई आरजू...ये समंदर है इश्क का यहाँ डूबना है अकेले...भूल दुनियादारी छोड़ सब मेलें.....
जब हो जाये जिंदगी पर इश्क की नेमत भारी....लगने लगेगी समंदर की गहराई बड़ी प्यारी.....है कहना आसान पर उतरना बेहद मुस्किल...ये समंदर है इश्क का ...जाना उस और जब हो जाओ काबिल.....डूबना होता है प्यार में दूर होके अपने प्यार से...समेट कर हर दर्द हर आहें डूब जाना होता है अपने आपसे... ये कोई मामूली नही समंदर है इश्क का....जहाँ आतें हैं वो पल जब ये तय नही कर पाता मन इश्क हम में है या इश्क में हम.......

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