पहाड़ियों के उस पार देर तक तकती रहती है ये आंखे।।। जाने क्या है वहाँ।।। बार बार नज़र उस ओर जाती है फिर लौट आती है अपनी आँखों में एक सूनापन सज़ाए।।। फिज़ा में फ़ैली ख़ामोशी ज़ब्त होती जाती है मन में।।। एक खालीपन सा घेर लेता है मुझे अपने चहुँ ओर।।।इन पहाड़ों की तरह ये जीवन भी स्थिर सी प्रतीत होने लगती है।।। मौन पहाडों को देख ये जुबां बेज़ुबां सी होने लगती है।।
कोशिश करने लगती हूँ इन पहाड़ों की घुटी हुई बातें सुनने की।।
तो याद आ जाती है अपने मन की वो बातें जो कोई नही समझ पाता।। घुट के रह जाती है मुझमें ही कहीं।।अनायास ही दिल के किसी कोने से आवाज़ आती है।।। जिस दिन इन ख़ामोश पहाड़ियों को पढ़ने लगोगी समझने लगोगी उस दिन शायद तुम्हें भी कोई समझने लगे।।।। सुनती हूँ उसकी उम्मीद भरी बातें और देखने लगती हूँ फिर पहाड़ियों के उस पार।।।।।। बस यूहीं।
पहाड़ियों के उस पार।।।।
11:07 |
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
0 comments:
Post a Comment