उलझी सी रहती जिंदगी
रिश्तें रूपी जालों में
ये किया नही वो हुआ नहीं
गुम रहती ख्यालों में
वक़्त भी क्या क्या रंग दिखाए
पल में हँसाए पल में रुलाये
जिंदगी को अपनी ऊँगली पे नचाये
कहते हैं खुबसूरत है जिंदगी
जो झांको इसके दिल में
बड़ी उलझी सी है जिंदगी
रिश्तें रूपी जालों में
फसी सी है जिंदगी
कहने को कुछ भी कहें
जीना है अपनों के लिए
मूल मंत्र ये जिंदगी
कोई नही सोचता ओरों के लिए
जीतें सभी अपनों के लिए
अपनी जिंदगी
रिश्तें रूपी जालों में
कभी फ़स जाती है तो
कभी फसा देतें है हम जिंदगी
उलझी हुई है जिंदगी
उलझा देतें हम जिंदगी
रिश्तें रूपी जालों में
ये किया नही वो हुआ नहीं
गुम रहती ख्यालों में
वक़्त भी क्या क्या रंग दिखाए
पल में हँसाए पल में रुलाये
जिंदगी को अपनी ऊँगली पे नचाये
कहते हैं खुबसूरत है जिंदगी
जो झांको इसके दिल में
बड़ी उलझी सी है जिंदगी
रिश्तें रूपी जालों में
फसी सी है जिंदगी
कहने को कुछ भी कहें
जीना है अपनों के लिए
मूल मंत्र ये जिंदगी
कोई नही सोचता ओरों के लिए
जीतें सभी अपनों के लिए
अपनी जिंदगी
रिश्तें रूपी जालों में
कभी फ़स जाती है तो
कभी फसा देतें है हम जिंदगी
उलझी हुई है जिंदगी
उलझा देतें हम जिंदगी
7 comments:
आभार सर ..........
जिंदगी उलझन तो है मगर है बहुत खूबसूरत.
अत्यंत सुन्दर प्रस्तुति...
शुक्रिया ................
सुँदर... नमन...
सुँदर... नमन...
उलझी सी रहती है ये जिंदगी,
रिश्तें रूपी भवरों में।।
ये किया नही वो हुआ नहीं,
गुम रहती है ये ख्यालों में।।
वक़्त भी क्या क्या रंग दिखाता है मुझको यहाँ,
पल में हँसाता और पल में रुलाता मुझको यहाँ।।
मुझको अपनी ऊँगली पर नचाती है ये जिंदगी,
फिर भी कहते हैं सब खुबसूरत है ये जिंदगी।।
रिश्तें रूपी भवरों में फ़सी हुई सी जिंदगी,
कभी अच्छी तो कभी बेकार है ये जिंदगी।।
कोई नही सोचता यहाँ ओरों के लिए,
सभी जीते यहाँ सिर्फ अपनों के लिए।।
इस जिंदगी के रिश्ते रूपी भवरों में
कभी फ़स जाती हूं में भी
कभी खुद ही फसा देती है मुझे जिंदगी।
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