धर्म की लड़ाई आये दिन हो रहें बलात्कार खून ख़राबा हमे सब दिखता है हम सबको लिखने का मौका मिलता है.इन हादसों के कब्रों पर हमे हमारी पहचान स्थापित करने का स्वर्ण अवसर मिलता है....ग़र ये सब ना घटे तो ना जाने कितने लोग गुमनामी के अंधेरों में खो जाएँ..जो दिखता है हमे होते हुए तो उसे लिखना सिर्फ लिखना हमे अपना फर्ज़ लगता है....काश ये वक़्त भी हमे यूँही दिखता...यही वक़्त जो सदियों से चल रहा है बिना रुके...ना जाने कितने इतिहास कैद किये हुए अपने सीने में...काश हमें दिखता वक़्त ...तो देख सकते आज इसके आँखों में आंसू ...खून के आंसू...खून के आंसू बहाता हुआ वक़्त चल रहा है...उसे तो निरंतर चलना है चलते ही जाना है पर ये आंसू? क्या इसे भी यूँही निरंतर बहाना है....काश देख सकते सब इस वक़्त को उसके दर्द को....लिख सकते उसकी पीड़ा को...लिखने से अपनी पहचान के अलावा और किसी का भला हो ना हो पर शायद इस वक़्त को भी थोड़ी दिलासा मिल सके....#बसयूँही
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2 comments:
शुभ दिन सर.. चर्चा मंच में शामिल करने के लिये आपका आभार....
सच देखा नहीं जाता--जिया जाता है.
समय का आइना.
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