सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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यूँही......!!!

कोई रंज नही कोई गम नही 
तुम बिन लागे हैं ये जीवन अज़नबी

हर मोड़ पे रुके हम आवाज़ देते गये 
देखा न मुड़ के तुमने जो तुमने ठान ली 
यूँ मिले के फ़ासले बढ़ाते चले गये 
मेरी ख़ामियों को कुछ यूँ उज़ागर कर गये
ये प्यार था या मेरी मोहब्बत का अँधा जुनूं
जिंदगी लुटाकर कर भी हम तन्हा ही रह गये 
अपनी ही नज़रों में हम गिरते चले गये 
बातों पे तेरे यकीं की ये सज़ा है हमने पाई
एक नादाँ से दिल लगाई जो समझदार हो गयें 
देख समझदारी जिनकी अश्क ख़ामोशी से बह गयें 
वक़्त बीतता गया घाव भरते गयें 
रह रह ये टीश मेरी यादों को कुरेदते गयें 
रंग प्यार का मेरे जाने उन नज़रों ने क्या देखा 
छोड़ गया मुझे मेरे हाल पे जिसने दिखाया था प्रेम गहरा 
रोना है हँसना है यूँही तुझे दूर से देख देख जीना है 


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5 comments:

आशीष अवस्थी said...

सुंदर व सटीक जी , धन्यवाद !
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आपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 18 . 9 . 2014 दिन गुरुवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !

निभा said...

शुक्रिया आशीष जी ....!!!

Unknown said...

Bahut hi sunder Nibha ji..... Shubhkaamnaayein aapko....

vj said...

बहुत सुन्दर..

Unknown said...

बहुत ही बेहतरीन 😌😌

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