सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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#बसयूँही.....!!!!!

हर लम्हा तेरी यादों से लबरेज़ 
सुकून दे जातीं हैं इस बेज़ान
सी ज़िस्म को .....तुम्हारे लिखे
हर लफ्ज़ तमाम पंतियाँ मेरे रूह 
को सुकूं दे जाता है ..पढ़ती रहती 

हूँ घण्टों दोहराती रहती हूँ हर बार 
जब भी तुमसे दुरी का अहसास 
भिगोने लगता है तुम्ही से नज़रें बचाए 
तुम्हारे बेहद क़रीब आके बैठ जाती हूँ 
देखती रहती हूँ तुम्हें मन प्राण से 
अपलक निहारती रहती हूँ तुम्हें 
अच्छा लगता है जब तुम छोटी 
छोटी सी बातों पर इक मासूम बच्चे 
सा खिलखिला उठते हो..और मैं 
तुम्हे मुस्कुराता देख पहुँच जाती हूँ 
अपने ही ख्यालों में याद आता है वो पल 
जब तुम्हारी मुस्कराहट की वजह कभी 
में भी रहा करती थी ..जी उठती हूँ उन यादों 
के सहारे हकीकत से कोसों दूर तुम्हारे संग 
अपनी ही दुनियां में ...तुम्हारे यूँ मेरे जीवन 
से चले जाना मेरे जिंदगी में एक सुन्यता 
का पसर जाना बेहद तकलीफ़ भरा है लेकिन 
तुम्हारा यूँ मेरे नज़रों के सामने रहना अपने 
खुबसूरत अल्फाज़ों को मुझे पढ़ने का मौका 
देना कहीं न कहीं तुम में मुझे मेरे होने का 
अहसास दिलाता है यही मेरे लिए मेरे प्रेम 
के लिए मुझे ख़ास दर्शाता है ....#बसयूँही 


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4 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

खूबसूरत अभिव्यक्ति।

निभा said...

शुक्रिया सर .....

vj said...

beautiful presentation...

Unknown said...

जय हो आपकी शब्दों को पिरोने की काबलियत को।।🙏

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