सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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दिल के क़रीब.....पहुँच से दूर....!!!!!

देर रातों को अकसर
तेरी यादें मुझे चारों
ओर से घेर लेती है 
बहोत ही बेबस बेहद 
लाचार सी महसूस 
करने लगती हूँ 
खुदको ...ढेरों बातें 
करना चाहती हूँ 
और करती भी हूँ 
वो दूर आसमां को 
निहारते हुए उन 
सितारों से...देखो इन 
सितारों को.. बिलकुल 
तुम सी हैं खुबसूरत
बेहद ख़ास..दिल के क़रीब
मेरे पहुँच से दूर....!!!!#बसयूँही 

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8 comments:

आशीष अवस्थी said...

सुंदर रचना व लेखनी , निभा जी कम शब्द पड़ जाते हैं , आपकी रचनाओं की बात ही कुछ अलग है , धन्यवाद !
~ ज़िन्दगी मेरे साथ - बोलो बिंदास ! ~ ( एक ऐसा ब्लॉग -जो जिंदगी से जुड़ी हर समस्या का समाधान बताता है )

निभा said...

शुक्रिया सर पसंद करने के लिए...!!!परंतु रचना के आगे आपकी तारीफ़ कुछ अधिक ही वजनदार लग रही है

कविता रावत said...

सच कभी ऐसा भी होता है जो बहुत पास होते हैं वे सबसे दूर लगते हैं .. गाना भी कविता के अनुरूप बहुत अच्छा लगा ...
बहुत बढ़िया प्रस्तुति

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

धरातल से जुड़ी रचना।

निभा said...

शुक्रिया कविता जी...!!!

निभा said...

आभार सर आपका...!!!

vj said...

हर बार ऐसा क्यों होता है आपकी रचना पढ़ कर लगता है मेरे ज़ज्बातों की ही चर्चा हो रही है। बेहतरीन..

Unknown said...

सुंदरता के साथ उच्चतम शब्दों का प्रयोग एहसास कराने के लिए।🙇

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