सपनों को मेरे दिया तुमने
इंद्रजाल सा सम्मोहन
आंसू की सृष्टि रच डाली मेरी आँखों में
अधरों ने किया ख़ामोशी का आलिंगन
गीत दिए थे तुमने ही इन लबों पर
रंगों से भर दिए थे मन
शब्दों के संसार में विचरण
तुमसे ही मेरे हमदम
मेरे भ्रम की तुम हो हक़ीकत
मेरे रूह की तुम ज़रूरत
खंड खंड में हो अखंड
जल उठते हो मुझमे प्रचंड
बादल कोई गलता नही
ज्वाला ये बुझती नही
तेरा ज्ञान मेरा भ्रम
इनमें बस इक
मेरा प्रेम चेतन
नही जानती पाप और पूण्य
तुमपे अर्पण है यह मन
तुमपे अर्पण है ये मन
इंद्रजाल सा सम्मोहन
आंसू की सृष्टि रच डाली मेरी आँखों में
अधरों ने किया ख़ामोशी का आलिंगन
गीत दिए थे तुमने ही इन लबों पर
रंगों से भर दिए थे मन
शब्दों के संसार में विचरण
तुमसे ही मेरे हमदम
मेरे भ्रम की तुम हो हक़ीकत
मेरे रूह की तुम ज़रूरत
खंड खंड में हो अखंड
जल उठते हो मुझमे प्रचंड
बादल कोई गलता नही
ज्वाला ये बुझती नही
तेरा ज्ञान मेरा भ्रम
इनमें बस इक
मेरा प्रेम चेतन
नही जानती पाप और पूण्य
तुमपे अर्पण है यह मन
तुमपे अर्पण है ये मन
3 comments:
वाह, अति सुंदर चरितार्थ किया हैं आपने🙆
बेहतरीन .........
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (22-11-2014) को "अभिलाषा-कपड़ा माँगने शायद चला आयेगा" (चर्चा मंच 1805) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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