तुम्हारे शब्दों की बारिश होती है जब भी
रोम रोम भींग उठता है मेरा
गुलज़ार होता दिल का आँगन
महक उठता मन का उपवन
जो हो जाते कभी बादल रुष्ट
अपनी तेज़ गढ़ गढ़ाहट से लगते
मुझे डराने
बनके अमृत शीतल बोल तुम्हारे
मेघ मल्हार लगते हैं सुनाने
खो जाती हूँ मधुर गीत में
थिरक उठते हैं तार धड़कनों के
साँस साँस लगते बहकने
सूखे पड़े हृदय में आ जाती नमी
अँकुरित होने लगती है श्रद्धा
दूर खड़े उस बच्चे की हँसी में
नज़र आने लगते हो तुम
खिलखिलाहट तुम्हारी
मेरे रूह में उतरने लगती है
और ये रूह इस दुनियाँ से दूर
आसमान में इंद्रधनुष के रंगों में समा
जाता है.....!!!!!
तुम्हारे शब्दों की बारिश...!!!
10:22 |
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9 comments:
सुंदर रचना । ब्लाग फालौवर बटन नहीं लगाया है आपने । पता नहीं चल पाता है आपकी पोस्ट छपने का ।
शुक्रिया आपका...बटन लगा हुआ था कुछ जोड़ने के चक्कर में हट गया..फिर से लगाने की चेष्टा कर रही हूँ..!!!
बेहतरीन रचना
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (24-11-2014) को "शुभ प्रभात-समाजवादी बग्घी पे आ रहा है " (चर्चा मंच 1807) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर रचना
शुक्रिया मोनिका जी...!!!
शुक्रिया सर...शामिल करने के लिए धन्यवाद आपका....!!!
शुक्रिया भारती जी...!!!
बहुत बेहतरीन लिखा है आपने।ऐसा ही होता है 😊
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