सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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क्या तुम मेरे भ्रम मात्र थे......!!!

क्या तुम मेरे भ्रम मात्र थे 

जब भी पसर आती धुप
मन के आँगन में 
नज़रें तलाशती थी तुम्हें
अपने आसपास के 
वातावरण में 
क्या नज़र आते थे तुम......??

व्याकुल प्राणों में जब
लहर दर्द की 
टिस सी उठाती थी 
तरस उठते थे कान 
शीतल तुम्हारे बोलों को 

क्या कभी  सुन पाती थी......??

छल छल करके छलकी आंखे
इन आंसुओं को मगर
पनाह न मिला 
धुल न सकें इनसे तेरे चरण कमल भी
रूह को मेरी कोई आराम न मिला....!!!

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