सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
RSS

साज़िसें.......!!!

साज़िस...... ये शब्द सुनते ही अधिकतर हमारे मन में कुछ बुरा होने या कुछ बुरा किये जाने का ही ख्याल 
आता है...लेकिन ऐसा है नही..मेरा मानना है के साज़िसें अच्छा करने के लिए भी की जा सकती है या होती है...
जिस तरह हर सिक्के के दो पहलू होते हैं.........ठीक उसी तरह सज़िसें भी अच्छी बुरी होती है.......!!!
_________________________________________________________________________________
इन बहती हवाओं का सहारा ले...आती हैं कुछ साजिसें...........कोई नही जनता कब इन हवाओं संग
कौन सी नयी साजिस हमसे मुख़ातिब हो जाये.......कभी खुशियाँ एक जुट हो इन हवाओं के संग 
जिंदगी में हमारे भरने आ जाती हैं रंग......खुशियों से ओ
तप्रोत हो उठता है मन.....तो कभी प्रेम करता है 
चुपके से आगमन इन हवाओं संग....छा जाता है रूह पे रंगने अपने रंग...रगीं लगती है सारी दुनियाँ
हसीं लगते नज़ारें....मन में उठते भाव हर घड़ी..प्रेम गीत ही गायें....लगती बड़ी प्यारी ये हवाएँ....
जब जब खुशियों प्रेम संग इनके आयें....भर के बाँहों में हमें खिलखिलाहट से नमाज़ें.........
ये हवाएं बहती ही रहती है....मौका सज़िसों को देती ही रहती है.....तो कब रहती भला ये दुःख..उदासियाँ भी पीछे 
संग हवाओं के ये भी चली आती है खिचे......वो आती है नज़दीक...चेहरे को मेरे करने को विकृत...
लड़ पड़ती हूँ मैं उससे......मुझे हौसला देती मेरी प्रीत....उदासियाँ उलझती है मुझसे...करती है मुझपे हावी होने की चेष्टा...छलक पड़ते हैं आंसू मेरे पर नही खत्म होने देती मैं तेरे प्रति अपनी निष्ठा.....थक जाती हूँ जब इन उदासियों से लड़ते लड़ते...होने लगती हूँ कमज़ोर....ये उदासियाँ आ ही जाती है निकट मेरे..नही चल पाता इनपे मेरा कोई जोड़.....हो जाती है हतप्रभ आके मेरे दिल के क़रीब....हृदय पटल पे बैठ कमल पुष्प सा तूं 
मुस्कुराता है तभी........मुस्कुराहट तेरी इन उदासियों को ज़रा भी नहीं भाती....ये दूर बहोत दूर करने 
को फिर से कोई नई साज़िस है चली जाती........!!!#बसयूँही 

  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • RSS

2 comments:

Unknown said...

बहुत ही अनुभवी सच है 👍

निभा said...

:-)

Post a Comment