सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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बसयूँही मेरे दिल में रहना....!!!

इक आख़री पैग़ाम
मैं तेरे नाम लिखती हूँ
जाने जाना क्यूँ
मैं तुमसे प्रेम करती हूँ.

जाने वफ़ा तूं..मान है मेरा
तुझसे ही दिल धड़के
तूं ही जान है मेरी.

तुझसे ही नाम इश्क का
तूं ही है शान इश्क का
तुमसे ही अभिमान इश्क का.

मोहब्बत की बहार तुम्ही से
प्रेम की फ़ुहार तुम्ही से
तुमसे ही नूर इश्क में
तुमसे ही ग़ुरूर इश्क का

तूं है अनोखा इस दुनियाँ में
तूं ही मेरे मन का मीत
तुझ सा कोई कहीं न जन्मा
समझ सके जो
इस...प्रीत की रीत.

तुमसे है बस
इतना कहना
याद न करना
 दूर ही रहना
  ~पर~
चुपके चुपके
खुदसे से छुपके
बस यूँही मेरे
दिल में रहना...!!!

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