सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
RSS

स्वप्न लोक....!!!

छुपाके अपने सारे अहसास
मूंद पलकों को ठंडी आहों के साथ
चली जाती है वो अकसर अपनी
ख्यालों की दुनियाँ के पास
जुगनुओं की रौशनी में दमकता है फिज़ा
रंजों ओ ग़म से दूर जहाँ भवरें गाते हैं सदा
रंग बिरंगी तितलियाँ वहाँ मंडराती हैं सदा
मुस्कुराते हैं फूल खुश्बू बिखेरती हैं हवा
घुमड़ घुमड़ के बादल लातें
शीतल रिमझिम रिमझिम फ़ुहार
मोरनी के पैर थिरकते
सुनके मेघ मल्हार
पंछियों के कलरव से
हर्षित होता वो संसार
स्वप्न लोक की उन गलियों में
प्रेम ही प्रेम अपार
मूंद पलकों को जहाँ वो
पहुँच जाती इस दुनियाँ पार
ना कोई दर्द ना कोई ग़म
ना कोई साथ ना कोई आस
तनहा तनहा सा सफ़र
बस यूँही बन जाता
ख्यालों में खाश...!!!!

  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • RSS

10 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (10-11-2014) को "नौ नवंबर और वर्षगाँठ" (चर्चा मंच-1793) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

निभा said...

आभार सर ....!!!

Unknown said...

बस यूँही बन जाता ख्यालों में खाश...!!!!
वाह !!!

निभा said...

शुक्रिया...!!!

Unknown said...

मेरे ख्यालों को अलफ़ाज़ दे दिये आपने आज।।😍👍

निभा said...

:)

सु-मन (Suman Kapoor) said...

बहुत बढ़िया

कविता रावत said...

प्यार के सुनहरे ख्यालों में डूबी सुकोमल प्रस्तुति ..

निभा said...

शुक्रिया सुमन जी...!!!

निभा said...

पसंद करने के लिए शुक्रिया आभार आपका...!!!

Post a Comment