सुनो...तुम्हें गये हुए एक अरसा हुआ.....तुम्हें जाते हुए ये बेबस आँखें आज भी राह निहारती है...जब भी कोई बादल का टुकड़ा आता है मेरे आँगन ऊपर..रिमझिम बारिशों से अपने....कर देता है मेरे आँगन को तरबतर....फिर आता है पवन और ले जाता है अपने साथ इन बादलों को मुझसे दूर बहोत दूर.....याद आता है तुम्हारा आना....मेरे मन के आँगन में वो तुम्हारा प्यार बरसाना और चले जाना.........मुझसे दूर बहोत दूर.......देखो ये पवन लौटा लाती है बादलों को बार बार...ये बादल फिरसे बरसते हैं...पवन फिर ले जाती हैं इन्हें अपने साथ फिर से लौट आने को..............तुम भी तो इन्हीं बादलों की तरह आये थे न.......अपने प्रेम की फ़ुहार से मुझे भिंगोने....मैं भींग गयी थी रूह तक.....तुम्हारे प्रेम की बारिश से पनपी काई मेरे हृदय में फैलती ही गयी.....कोई ज़गह शेष न रहा.....दिन प्रतिदिन वो काई फैलती ही जा रही है.....सुनो.....हरियाली से भरी काई बिन बारिश सूख रही है......रंग उसका यूँ काला होना मुझे तनिक नही भाता.....हृदय की हरियाली कालिमा में प्रवरित हो इससे पहले.....तुम बादल बन इक बार आकर बरस जाओ....के इस हृदय में ज़मी प्रेम काई को थोड़ी सी नमी दे जाओ......यकीं है मुझे........
आओगे फिर बादल बन
बरसोगे तुम प्रेम संग
भिंगेगा मेरा अंग अंग
मधुर मधुर समा होगा
खुबसूरत फिर जहां होगा
बाँहपाश में तेरी बंध
गाएंगी धड़कन प्रेम छंद
साँसों की ख़ुश्बू से तेरी
रोम रोम मेरा पुलकित होगा
नैनों में होगा हर्ष ओ उल्लास
लबों पे प्रेम गीत होगा
हर तरफ़ होगी ख़ुशहाली
हर ज़र्रे में संगीत होगा
आना प्रिय तुम बदरी बनकर
प्रेम की बारिश कर जाना
भिंगो के मेरे रूह को कुछ पल
भले तुम फिर लौट जाना
सूखी पड़ी मेरे हृदय की ज़मीं को
ज़रा तर तूं कर जाना
लौट लौट आना प्रिय तुम
कुछ फ़ुहार मुझपे बरसा जाना
चले जाना पर जाते जाते
हृदय को मेरे तर कर जाना
सूखा पड़ा है मन का आँगन
बंज़र सा हो रहा हृदय
पवनों को संदेसा दे दे
मूर्छित हुआ मेरा समय
राह निहारूँ तुझको पुकारूँ
के सुन ले इक बार मेरी पुकार
बदरी बन चंद बूंदों से
ला दे इस जीवन में बहार......!!!!!
बदरी बन तुम आना प्रिय......!!!
00:32 |
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3 comments:
प्रेम का गहरा एहसास लिए शब्द ... भावपूर्ण रचना ...
Ration Card
आपने बहुत अच्छा लेखा लिखा है, जिसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
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