वो रहता है आँखों में मेरी इक ख़ाब की मानिंद
जो बहता है रगो में मेरी लहू की तरह~
वो महकता है सांसों में मेरी ग़ुलाब की तरह
जो रहता है उम्मीदों में मेरी दुआ बनके~
वो दूर है मुझसे आसमां की तरह
जो रहता है जुड़ा मुझसे ज़मी बनके~
वो धुप में लगता है मेरी परछाई की तरह
जो रहता है मुझमें मेरी रूह बनके~
वो लगता है पुरानी किसी शराब की तरह
जो लिपटता है ज़िस्म से मेरी ख़ुमार बनके~
वो रंगों में समाया है किसी तस्वीर की तरह
जो बनता बिगड़ता है मेरी तक़दीर की तरह~
वो इश्क़ है फ़िज़ा में हवा की तरह
जो धड़कता है मुझमें धड़कन बनके~
वो लवों पर मेरी मुस्कुराहट बन संवर जाता है
जो धड़कनों में बनके प्यार साँस लेता है~
वो बादल है इश्क़ का~मुहब्बत बरसाता है
जो होके पहुँच से दूर~दिल पे राज़ करता है~
वो बुरा नही है दिल का~ज़रा आदत से मज़बूर है
गीला मुझसे नही कोई उसे खुदपे ग़ुरूर है~!!!#बसयूँही
4 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (29-06-2015) को "योग से योगा तक" (चर्चा अंक-2021) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
अच्छे शेर, बधाई
achchhe sher ..
वाह, बहुत खूब
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