मन के किनारों पर बैठ
असंख्य शब्द रुपी कंकड़ों को फेंकते
बीतते रहे अनगिनत दिन
अनगिनत रात
पर हुआ न कोई हलचल
उस समुंद्र रुपी दिल में
पसरा रहा मौन
क्षण क्षण डंसता
अपने फुँफकार से
बिष की तेज़ धार छोड़ता
रेशा रेशा नसों में घुलता
रेज़ा रेज़ा दिल तड़पाता
वह मौन का ज़हर ~!!!#बसयूँही
मौन का ज़हर_____
07:23 |
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1 comments:
शुक्रिया आभार आपका शास्त्री जी____
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