सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
RSS

खुबसूरत ये जहां होगा~!!!

चहक रही है धरती सारी
महक बसी है फ़िज़ाओं में
दिल में उतार लो निग़ाह से
सुकूँ मिलेगा इन नज़ारों में

पेड़ पे झूला डालेंगे हम
मस्त पपीहे गीत सुनाएंगे
सखियों के संग झूमेंगे हम
ख़ुलके ख़ुशीयाँ मनाएंगे

ख़ुश्बूओं से लिपटी हवाएँ
प्राण प्राण महकाएँगे
फलों से बोझिल शाखाएँ
स्वाद सृष्टि को दिलाएंगे

पग पग पे होगी हरियाली
आसमां भी ख़ुश होगा
देगा सौग़ात जल का जब वो
धरती का सीना भी तर होगा

पल दो पल सृष्टि को दें तो
मिलेंगी खुशियाँ अपरम्पार
चहुँ दिशा गा उठेंगी
जो होंगे पेड़ पौधे अपार~!!!

  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • RSS

6 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (07-06-2015) को "गंगा के लिए अब कोई भगीरथ नहीं" (चर्चा अंक-1999) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

निभा said...

शुक्रिया आपका~~!!!

रश्मि शर्मा said...

ख़ुश्बूओं से लिपटी हवाएँ
प्राण प्राण महकाएँगे
फलों से बोझिल शाखाएँ
स्वाद सृष्टि को दिलाएंगे..बहुत सुंदर लि‍खा

Onkar said...

सुन्दर रचना

निभा said...

धन्यवाद रश्मि जी~!!!

निभा said...

पसंद करने के लिए शुक्रिया आपका~!!!

Post a Comment