मैं थी ज़मी सूखी बंज़र
तुम्हें बनके बादल आना ही था
थी प्यासी मैं कई जन्मों की
तुम्हें बनके बारिश बरसना ही था
रोम रोम को करने तृप्त
तुम्हें, पोर पोर को भिगोना ही था
इक पन्ना था कोरा ज़ीवन में मेरे
तुम्हें बनके शब्द आना ही था
सुनहरी स्याही की चाहत में भींग
नज़्मों में मेरी तुम्हें ढ़लना ही था
गुनगुना सकूँ ताउम्र जिसे वो गीत बन
लबों पे मेरी तुम्हें सजना ही था
इक ज़ख़्म था दिल में दबा
मरहम बनके तुम्हें आना ही था
तुम थे ख़ुश्बू संग हवाओं के आये
तुम्हें पल दो पल बाद जाना ही था
चाहती हूँ तुम्हें बेशूमार बेसबब में
ग़ुरूर तुमको खुदपे आना ही था
तुम ख़ाब हो नज़रों में मेरे
हक़ीक़त से मुझे बसयूँही
एक दिन गुज़रना ही था____#बसयूँही
4 comments:
बेहतरीन :)
शुक्रिया __/\__ :)
बहुत सुंदर प्रस्तुति
धन्यवाद आपका
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