पथराई आँखों से
निहारती है वो
मुस्कुराती हुई
तस्वीरें अपनी
जो आज अतीत का
हिस्सा बन
समेट अपने
इतिहास को
जमा होकर
रह गईं हैं
मोबाइल के
फोल्डरों में
वह अकसर
मोबाइल के
स्क्रीन पर तो
कभी किसी
डीपी में लगा
अपनी तस्वीर
उन लम्हों को
करके याद
चाहती है
कुछ पल को
बिलकुल वैसे ही
मुस्कुराना
लेकिन उसके
भावहीन होटों पर
हो हरकत कोई
इससे पहले ही
फूट पडती है
आँखों के कोरों से
इक धारा
अश्रुओं की
बिना उसके
अनुमति के
बस यूँही____|||#बसयुंही
निहारती है वो
मुस्कुराती हुई
तस्वीरें अपनी
जो आज अतीत का
हिस्सा बन
समेट अपने
इतिहास को
जमा होकर
रह गईं हैं
मोबाइल के
फोल्डरों में
वह अकसर
मोबाइल के
स्क्रीन पर तो
कभी किसी
डीपी में लगा
अपनी तस्वीर
उन लम्हों को
करके याद
चाहती है
कुछ पल को
बिलकुल वैसे ही
मुस्कुराना
लेकिन उसके
भावहीन होटों पर
हो हरकत कोई
इससे पहले ही
फूट पडती है
आँखों के कोरों से
इक धारा
अश्रुओं की
बिना उसके
अनुमति के
बस यूँही____|||#बसयुंही
1 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-12-2016) को "जीने का नजरिया" (चर्चा अंक-2559) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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